माइग्रेन
बच्चों में सिरदर्द एक आम समस्या है। 7 साल की उम्र तक लगभग 50 % बच्चे व 15 साल की उम्र तक 80 % बच्चे सिरदर्द को एक बार जरूर अनुभव कर चुके होते हैं।
सिरदर्द मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं – प्राइमरी व सेकंडरी। प्राइमरी कैटेगरी में माइग्रेन व टेंशन टाइप सिरदर्द आते हैं। सेकेंडरी कैटेगरी में सिरदर्द किसी खास वज़ह जैसे दिमागी बुखार, सिर की चोट, मिर्गी, ट्यूमर, दांत, साइनस, कान या आँख की बीमारी से होता है।
माइग्रेन क्या है ?
माइग्रेन एक सिरदर्द का रोग है। माइग्रेन का हमला किसी भी आयु में हो सकता है, लेकिन ज्यादातर इसकी शुरुआत किशोर उम्र से होती है। इसके ज्यादातर रोगी वे होते हैं, जिनके परिवार में यह रोग पहले भी किसी को हो चुका हो।
क्या बच्चों में भी माइग्रेन सिरदर्द होता है ?
हाँ। 5 -15 वर्ष की उम्र में लगभग 10 प्रतिशत बच्चों को माइग्रेन की शिकायत होती है। किशोरावस्था तक आते – आते यह 28 % तक पहुँच जाती है।
माइग्रेन के मुख्य लक्षण क्या होते हैं ?
माइग्रेन का दर्द हर किसी में अलग – अलग होता है। माइग्रेन में सिर के एक ही हिस्से में दर्द होता है। बच्चों में अधिकतर यह सिर में दोनों तरफ भी हो जाता है। इसमें रह – रहकर सिर में बहुत ही चुभन भरा दर्द होता है। इस सिरदर्द के साथ साथ कई बार जी मिचलाना, उल्टी होना, रोशनी व तेज़ आवाज़ के प्रति संवेदनशीलता, दृष्टि दोष व सुस्ती जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
अधिकतर माइग्रेन अटैक 1 – 72 घंटे तक रहता है, लेकिन ट्रिगर के संपर्क में आने से दुबारा भी हो सकता है। कई बार माइग्रेन अटैक ठीक होने में 5 – 7 दिन का वक्त भी ले लेता है ( स्टेटस मीग्रैनोसस )।
किसी – किसी बच्चे में माइग्रेन में सिरदर्द के बजाय चक्कर , बार – बार पेट दर्द, उल्टियाँ भी हो सकती हैं ( माइग्रेन इक्वीवैलेंट्स )। कभी – कभी माइग्रेन के साथ एक तरफ के हाथ – पैर में लकवे जैसे स्थिति भी देखी जाती है।
माइग्रेन क्यों होता है ?
माइग्रेन ऐसा सिर दर्द है, जो अधिकतर आनुवंशिक होता है। इन लोगों का ब्रेन ज्यादा संवेदनशील होता है। ट्रिगर्स के सम्पर्क में आने पर दिमाग में सिरोटोनिन नाम के रसायन की मात्रा में परिवर्तन होता है। जिसकी वजह से रक्त वाहिनियाँ सिकुड़ती व फैलती है और सिरदर्द होने लगता है।
- माइग्रेन होने पर क्या करें ?
- अपने सोने के कमरे में अंधेरा रखें। तेज़ रौशनी कभी – कभी माइग्रेन के लक्षणों को और भी ज्यादा प्रभावित कर देती हैं, इसलिए हमेशा एक अंधेरे कमरे में ही सोएं।
- डॉक्टर द्वारा बताई गई सिरदर्द की दवा तुरंत लें।
- पानी व एनर्जी ड्रिंक पर्याप्त मात्रा में लें।
- डॉक्टर द्वारा दी गई डायरी में सिरदर्द के बारे में पूरी जानकारी लिखें।
- माइग्रेन के अटैक से कैसे बचें ?
- रात की नींद अच्छी तरह से लें। इस बात को सुनिश्चित करें कि आप 8-9 घंटों की गहरी नींद ले रहे हैं। कोशिश करें कि हर दिन सोने और उठने का एक नियमित कार्यक्रम हो।
- भूखे न रहें – एक गलत दिनचर्या भी माइग्रेन को बढ़ावा दे सकती है। खासतौर पर भोजन समय पर ना खाया या फिर छोड़ देना। माइग्रेन पेशेंट को कभी भी व्रत नहीं रखना चाहिये। ऐसा करने से आपके माइग्रेन का दर्द दुबारा वापस आ सकता है। हमेशा कोशिश करें कि दिन भर में तीन टाइम भोजन लें।
- आप जो भी खाते हैं, उसको एक डायरी पर जरुर नोट करें। ऐसे कई प्रकार के आहार होते हैं जो माइग्रेन को और भी बढावा देते हैं। ऐसे भोजन का प्रभाव 30 मिनट से 12 घंटे के भीतर हो जाता है, अगर आपको खाना खाने के बाद तकलीफ महसूस हो तो तुरंत ही समझ जाएं कि आपने क्या खाया था। इस तरह से आप दुबारा वह आहार लेने से बच सकते हैं। चॉकलेट, पुराने चीज़, जंक फ़ूड, आइस क्रीम अल्कोहल में ऐसे रासायनिक तत्व ( नाइट्राइट, MSG) पायें जाते हैं जो माइग्रेन को बढ़ा सकते हैं। अक्सर कैफीन की अधिकता भी सिरदर्द का बनती है।
- ऐसे मरीज जिन्हें माइग्रेन प्रोफाईलैक्सिस (अटैक रोकने की दवा ) के बारे में बताया गया है, उन्हें डॉक्टर द्रारा बताई गई दवाएं नियमित रुप से लेनी चाहिये।
- मिनट – मिनट पर बदलने वाले मौसम से माइग्रेन पेशेंट को हमेशा दूर रहना चाहिये और अपना ख्याल रखना चाहिये।
- तेज़ परफ्यूम या खुशबू से बचें।
- योगा, मेडिटेशन और मार्निंग वॉक, कुछ ऐसी अच्छी आदतें हैं जिन्हें माइग्रेन पेशेंट को जरुर अपनानी चाहिये। खासकर नियमित रुप से व्यायाम भी करना चाहिये।
- स्ट्रेस से बचें – थकान, दबाव या स्ट्रेस से भी माइग्रेन बढ़ जाता है।
- तेज़ रोशनी से दूर रहें – जब भी घर से बाहर निकले तब हाथ में छाता लें और सीधी सूरज की रौशनी से बचें। सन ग्लास ( धुप का चश्मा ) भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
- पानी पियें – विशषज्ञों के अनुसार डिहाइड्रेशन भी माइग्रेन का कारण होता है। इसलिए माइग्रेन पेशेंट को ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की सलाह दी जाती है।
- कभी कभी आँखों पर अधिक ज़ोर पड़ने से भी सिरदर्द हो जाता है। अगर आप नज़र का चश्मा लगातें हैं तो देखें कि कहीं नंबर तो नहीं बदल गए हैं। लगातार एक ही काम करने से भी आँखों पर जोर पड़ता है। ( टी. वी. देखना, पढ़ना )
माइग्रेन क्यों होता है ?
माइग्रेन ऐसा सिर दर्द है, जो अधिकतर आनुवंशिक होता है। इन लोगों का ब्रेन ज्यादा संवेदनशील होता है। ट्रिगर्स के सम्पर्क में आने पर दिमाग में सिरोटोनिन नाम के रसायन की मात्रा में परिवर्तन होता है। जिसकी वजह से रक्त वाहिनियाँ सिकुड़ती व फैलती है और सिरदर्द होने लगता है।
माइग्रेन होने पर क्या करें ?
- अपने सोने के कमरे में अंधेरा रखें। तेज़ रौशनी कभी – कभी माइग्रेन के लक्षणों को और भी ज्यादा प्रभावित कर देती हैं, इसलिए हमेशा एक अंधेरे कमरे में ही सोएं।
- डॉक्टर द्वारा बताई गई सिरदर्द की दवा तुरंत लें।
- पानी व एनर्जी ड्रिंक पर्याप्त मात्रा में लें।
- डॉक्टर द्वारा दी गई डायरी में सिरदर्द के बारे में पूरी जानकारी लिखें।
माइग्रेन के अटैक से कैसे बचें ?
- रात की नींद अच्छी तरह से लें। इस बात को सुनिश्चित करें कि आप 8-9 घंटों की गहरी नींद ले रहे हैं। कोशिश करें कि हर दिन सोने और उठने का एक नियमित कार्यक्रम हो।
- भूखे न रहें – एक गलत दिनचर्या भी माइग्रेन को बढ़ावा दे सकती है। खासतौर पर भोजन समय पर ना खाया या फिर छोड़ देना। माइग्रेन पेशेंट को कभी भी व्रत नहीं रखना चाहिये। ऐसा करने से आपके माइग्रेन का दर्द दुबारा वापस आ सकता है। हमेशा कोशिश करें कि दिन भर में तीन टाइम भोजन लें।
- आप जो भी खाते हैं, उसको एक डायरी पर जरुर नोट करें। ऐसे कई प्रकार के आहार होते हैं जो माइग्रेन को और भी बढावा देते हैं। ऐसे भोजन का प्रभाव 30 मिनट से 12 घंटे के भीतर हो जाता है, अगर आपको खाना खाने के बाद तकलीफ महसूस हो तो तुरंत ही समझ जाएं कि आपने क्या खाया था। इस तरह से आप दुबारा वह आहार लेने से बच सकते हैं। चॉकलेट, पुराने चीज़, जंक फ़ूड, आइस क्रीम अल्कोहल में ऐसे रासायनिक तत्व ( नाइट्राइट, MSG) पायें जाते हैं जो माइग्रेन को बढ़ा सकते हैं। अक्सर कैफीन की अधिकता भी सिरदर्द का बनती है।
- ऐसे मरीज जिन्हें माइग्रेन प्रोफाईलैक्सिस (अटैक रोकने की दवा ) के बारे में बताया गया है, उन्हें डॉक्टर द्रारा बताई गई दवाएं नियमित रुप से लेनी चाहिये।
- मिनट – मिनट पर बदलने वाले मौसम से माइग्रेन पेशेंट को हमेशा दूर रहना चाहिये और अपना ख्याल रखना चाहिये।
- तेज़ परफ्यूम या खुशबू से बचें।
- योगा, मेडिटेशन और मार्निंग वॉक, कुछ ऐसी अच्छी आदतें हैं जिन्हें माइग्रेन पेशेंट को जरुर अपनानी चाहिये। खासकर नियमित रुप से व्यायाम भी करना चाहिये।
- स्ट्रेस से बचें – थकान, दबाव या स्ट्रेस से भी माइग्रेन बढ़ जाता है।
- तेज़ रोशनी से दूर रहें – जब भी घर से बाहर निकले तब हाथ में छाता लें और सीधी सूरज की रौशनी से बचें। सन ग्लास ( धुप का चश्मा ) भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
- पानी पियें – विशषज्ञों के अनुसार डिहाइड्रेशन भी माइग्रेन का कारण होता है। इसलिए माइग्रेन पेशेंट को ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की सलाह दी जाती है।
- कभी कभी आँखों पर अधिक ज़ोर पड़ने से भी सिरदर्द हो जाता है। अगर आप नज़र का चश्मा लगातें हैं तो देखें कि कहीं नंबर तो नहीं बदल गए हैं। लगातार एक ही काम करने से भी आँखों पर जोर पड़ता है। ( टी. वी. देखना, पढ़ना )
माइग्रेन प्रोफाईलैक्सिस (अटैक रोकने की दवा ) कब लें ?
- सप्ताह में एक या अधिक बार सिरदर्द हो।
- सिरदर्द का बच्चे की स्कूल, खेल या अन्य गतिविधियों पर असर पड़ रहा हो। ( PedMIDAS score above 20)
प्रोफाईलैक्सिस का मुख्य उद्देश्य सिरदर्द में 1 – 2 / महीना तक की कमी करना व PedMIDAS score <10 लाना है। दवा लगभग 4 – 6 महीने तक लेना जरुरी है। इसके बाद दवा कुछ सप्ताह तक कम करते हुए बंद की जाती है।
माइग्रेन और टेंशन टाइप सिरदर्द में क्या अंतर है ?
बच्चों में टेंशन टाइप सिरदर्द भी काफ़ी होता है। इसमें पूरा सिर हल्का हल्का लगातार दुखता है। सिरदर्द के साथ जी मिचलाना, उल्टी होना, रोशनी व तेज़ आवाज़ के प्रति संवेदनशीलता, दृष्टि दोष जैसी समस्याएं नहीं होती। माइग्रेन का दर्द क्रिया कलापों से बढ़ता है व बच्चा शांति से लेटना पसंद करता है जबकि टेंशन टाइप दर्द पर क्रिया कलापों का असर नहीं होता व बच्चा सिरदर्द की तकलीफ़ बताते हुए बैचेन होकर घूमता रहता है। कुछ बच्चों में दोनों तरह के सिरदर्द होते हैं। उनमें बीच – बीच में माइग्रेन का तेज़ दर्द होता है व रोज़ाना टेंशन टाइप दर्द रहता है।
क्या सिरदर्द में CT Scan या MRI जरुरी है ?
सिरदर्द के हर बच्चे के माँ बाप के मन में एक डर रहता है कि कहीं बच्चे को ब्रेन ट्यूमर तो नहीं ? वो हमेशा डॉक्टर से ये जाँच करवाने के लिए कहते है। अधिकांश बच्चों में प्राइमरी कैटेगरी के सिरदर्द ही होते हैं जिनका निदान बच्चे की शिकायत व सामान्य शारीरिक जाँच से हो जाता है।
जिन बच्चों में सिरदर्द के साथ शारीरिक जाँच में कमी होती है, या साथ में दौरे की शिकायत है या बच्चे की उम्र 6 साल से कम है जहाँ बच्चा अपनी पूरी बात नहीं बता पाता, या परिवार में माइग्रेन या माइग्रेन इक्वीवैलेंट की शिकायत नहीं है तो ये जाँचें बीमारी तक पहुँचने में मदद करती हैं।